देवभूमि उत्तराखंड में ग्राम पंचायतों को विकास कार्यों के लिए बजट आवंटन की नीति मैदानी और पर्वतीय क्षेत्र के बीच खाई को चौड़ा कर रही है। मुख्य वजह है जनसंख्या के आधार पर बजट का पैमाना तय करना, जो इसमें बड़ी भूमिका निभा रहा है। पहाड़ के पलायन के चलते वैसे ही आबादी घट रही है, जिससे वहां विकास नाममात्र को ही पैसा मिल पा रहा है। ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग द्वारा ग्राम्य विकास कार्यक्रमों के सामाजिक एवं आर्थिक आकलन को लेकर कराए गए सर्वे की प्रारंभिक रिपोर्ट तो यही इशारा कर रही है। इस पर गौर करें तो पहाड़ की कई ग्राम पंचायतों को सालभर में 10 लाख रुपये तक का बजट भी नहीं मिल पा रहा। यही नहीं, मनरेगा, आवास योजना, सड़क से जुड़े बिंदुओं पर भी कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।

देवभूमि में पलायन को थामने के लिए कार्ययोजना तैयार करने के मकसद से ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग ने राज्य में ग्राम्य विकास कार्यक्रमों का सामाजिक एवं आर्थिक आकलन कराने का निश्चय किया। इसके तहत 150 गांवों का सर्वे किया गया, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रहे विभागों ग्राम्य विकास, पंचायत, सहकारिता, जलागम के साथ ही जायका परियोजना के कार्यों को इस बिंदु पर परखा गया कि इनसे आर्थिकी पर कोई फर्क पड़ रहा है अथवा नहीं। गौरतलब है कि पर्वतीय क्षेत्रों में कुल 6830 तो मैदानी क्षेत्रों में 932 ग्राम पंचायतें हैं।

सूत्रों की माने तो सर्वे की प्रारंभिक रिपोर्ट में बजट आवंटन को लेकर सामने आ रही तस्वीर से आयोग भी हैरत मे है। ग्राम पंचायतों को बजट आवंटन के मानकों में जनसंख्या को 60 फीसद, क्षेत्रफल व दुर्गम क्षेत्र को 20-20 फीसद वेटेज देना शामिल है। ऐसे में मैदानी क्षेत्रों की अधिक आबादी वाली कई पंचायतों को साल में एक-एक करोड़ तक की राशि मिल रही, जबकि पहाड़ में कई जगह 10 लाख रुपये सालाना भी नहीं। 2016-17 से यह स्थिति बनी हुई है। ऐसे में पहाड़ के गांवों में मुश्किलें आ रही हैं।

महिलाएं मजदूर मनरेगा में 55 फीसद 

सर्वे में मनरेगा को लेकर भी चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। गांवों में 55 फीसद महिलाएं मनरेगा में मजदूरी कर रही हैं। इसके बावजूद उनकी आर्थिक स्थिति में अपेक्षित बदलाव नहीं आया है।

आवास बने , मगर रहने के लिए कोई नहीं 

सूत्रों की माने तो सर्वे में ग्रामीण क्षेत्रों में आवास योजना को भी परखा गया। बात सामने आई कि अनुसूचित जाति के परिवार तो इन आवास में रह रहे हैं, मगर कई जगह लोगों ने योजना का लाभ उठाते हुए आवास बनाए, मगर वे वहां रह नहीं रहे।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here