कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नड्डा ने पिछले छह महीने में महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड चुनाव को भी नजदीक से देखा है लेकिन बतौर अध्यक्ष दिल्ली चुनाव उनका पहला संग्राम होगा। उसके बाद साल के अंत में बिहार सामने होगा जहां नड्डा ने जीवन का लंबा वक्त गुजारा है। यह रोचक इसलिए है क्योंकि नड्डा की पहली परीक्षा अगले एक पखवाड़े में ही शुरू हो जाएगी और अगले तीन साल तक डेढ़ दर्जन राज्यों में परखी जाएगी। चुनौती इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इनमें से 11 राज्य भाजपा और राजग के पास ही है जिसे दोहराने का दबाव होगा। जबकि आधे दर्जन राज्यों में संभावनाओं की तलाश लंबे समय से चल रही है।

सोमवार को अध्यक्ष पद पर चुनाव के साथ ही नड्डा ने भाजपा की उस परंपरा को जीवित रखा है जिसके तहत किसी खास परिवार से जुदा एक कार्यकर्ता ही अध्यक्ष की कुर्सी पर आसीन हुआ है। औपचारिक चुनाव से पहले केंद्रीय मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी समेत कई केंद्रीय मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों ने नड्डा के नामांकन के पक्ष में समर्थन किया था। कोई दूसरा दावेदार न होने की स्थिति में नामांकन का वक्त खत्म होने के साथ ही वह अध्यक्ष चुन लिए गए। जोशीले कार्यकर्ताओं के नारों, हिमाचल प्रदेश से आए नर्तकों, ढ़ोल नगाड़ो के बीच केंद्रीय चुनाव अधिकारी राधामोहन सिंह ने सभी नेताओं की मौजूदगी में नड्डा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर चुनाव की घोषणा की। अमित शाह ने पीठ थपथपाकर उनका उत्साहव‌र्द्धन किया।

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