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उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और चकराता विधायक प्रीतम सिंह ने एक बार फिर साबित कर दिया कि राजनीति में केवल पद और शक्ति ही नहीं, बल्कि विश्वास, सादगी और जनसेवा भी जीत की सबसे बड़ी कुंजी है।

जिला पंचायत अध्यक्ष देहरादून का चुनाव—जहां सियासत के रंग बदल रहे थे, अटकलों का बाजार गर्म था और विपक्ष का शोर लगातार बढ़ रहा था—उस माहौल में प्रीतम सिंह ने किसी तामझाम या बड़े मंच का सहारा नहीं लिया। उन्होंने चुपचाप, लेकिन बेहद दृढ़ कदमों से मैदान संभाला और वादों के बजाय भरोसे की पूंजी बांटी।

सादगी और स्वामीभाव का संगम

प्रीतम सिंह की पहचान हमेशा से स्वामीभाव वाली रही है—वे कभी जीत का श्रेय अकेले नहीं लेते। इस बार भी उन्होंने जिला पंचायत की जीत को कार्यकर्ताओं और जनता की जीत कहा। उनका मानना है, “राजनीति में असली पूंजी लोग हैं, और उनकी आस्था सबसे बड़ा सम्मान है।”

रणनीति जिसने बदली हवा

जहां विपक्ष आंकड़ों और आरोपों में उलझा रहा, वहीं प्रीतम सिंह ने संगठन और रणनीति का ऐसा तालमेल बैठाया कि अंतिम दौर में चुनावी हवा कांग्रेस के पक्ष में मुड़ गई। उनका अंदाज़ हमेशा साफ रहा—“जीतें तो गर्व, हारें तो भी मिलकर लड़ेंगे”

नतीजों में झलकी कृतज्ञता

जब नतीजा आया और कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की, तब प्रीतम सिंह की आंखों में जो चमक थी, वह सत्ता की नहीं, बल्कि कृतज्ञता की थी। लोगों ने महसूस किया कि यह केवल एक चुनाव नहीं जीता गया, बल्कि रिश्तों का विश्वास और जनसेवा का वादा भी जीत गया।

2027 का संदेश

इस जीत ने 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस कार्यकर्ताओं और संगठन में नई ऊर्जा भर दी है। संदेश साफ है—पद आते-जाते हैं, चुनाव जीत-हार का सिलसिला चलता रहता है, लेकिन जो नेता दिलों पर राज करता है, उसकी साख कभी नहीं मिटती।

By admin

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