अस्पतालों में कोरोना वायरस से जहां चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मी दिन-रात लड़ाई लड़ रहे हैं तो भविष्य के डॉक्टर्स भी छोटे से वायरस से कम चिंतित नही पिछले करीब 4 महीनों में चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र कोरोना के असर से इस कदर प्रभावित हुआ है कि आने वाले कल के डॉक्टर्स बन्द कमरों में सिर्फ थ्योरी तक सिमट कर रह गए हैं

बात उत्तराखंड की करें तो यहां भी देश की तरह ही चिकित्सकों की संख्या अनुपातिक रूप से बेहद कम है लेकिन चिंता अब भविष्य के उन डॉक्टर को लेकर भी है जो कोरोनाकाल में अपनी पढ़ाई से दूर हो गए हैं दरअसल मेडिकल एजुकेशन में भी ऑनलाइन क्लासेज के जरिए छात्रों को पढ़ाया जा रहा है यहां मेडिकल कॉलेज छात्रों की थ्योरी को लेकर  सिलेबस कंप्लीट करने की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन परेशानी उन प्रैक्टिकल्स को लेकर है जो मेडिकल फील्ड में सबसे जरूरी माने जाते है  4 महीने से छात्र ऑनलाइन ही जानकारियां ले रहे हैं जबकि प्रेक्टिकल पर फिलहाल कोई आदेश नही हो पाए हैं.जिससे फिलहाल प्रेक्टिकल होना मुश्किल लग रहा है.. एक तरफ छात्रों का दूरदराज जिलों या राज्यों से कॉलेज आना बेहद मुश्किल है ऊपर से अस्पताल में जाकर प्रैक्टिकल करना और इंटर्नशिप करना संक्रमण के लिहाज से बेहद खतरनाक है।

 

आपको बता दें कि कोरोना काल के दौरान बड़ी संख्या में चिकित्सकों की भर्ती की गई है और करीब 700 चिकित्सक भर्ती किए जा रहे हैं जिसके बाद राज्य में सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों के सभी पद भर जाने की बात कही जा रही है  लेकिन हकीकत यह है कि चिकित्सकों के ढांचे के रूप में मौजूदा जनसंख्या के लिहाज से अभी बेहद ज्यादा संख्या में डॉक्टर की राज्य को जरूरत है।। इसी तरह प्रदेश में 3000 नर्सिंग स्टाफ का ढांचा स्वीकृत है जिसमें से अब भी 2000 पद खाली पड़े हैं। जबकि मौजूदा मानकों के लिहाज से देखें तो प्रदेश में 5000 नर्सिंग स्टाफ की जरूरत है यानी अब भी करीब 4000 नर्सिंग स्टाफ की जरूरत राज्य को है। इस आंकड़े को जानने की इसलिए जरूरत है क्योंकि एक तरफ पहले ही चिकित्सक और नर्सिग स्टाफ की भारी कमी है और दूसरी तरफ भविष्य के डॉक्टरों के भविष्य पर भी कोरोना ने सवाल खड़े कर दिए है।। मौजूदा स्थितियों को देखकर कहा जा सकता है कि इस साल मेडिकल के छात्रों का समय से कोर्स को पूरा कर पाना काफी मुश्किल है।

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